बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 3)
मन्नी के खेतों के पास एक झाड़ी है; कहते हैं, वहाँ देवता झाड़खण्डेश्वर रहते हैं।
एक दिन शाम को मन्नी धूप-दीप, अक्षत-चन्दन, फूल-फल, जल लेकर गये और उकड़ू बैठकर उनकी पूजा करते न जाने क्या क्या कहते रहे।
फिर लौटकर प्रसाद पाकर लेटे और पहर रात पुरवा की तरफ चल दिये। एक हफ्ते बाद बैंगनी साफा बाँधे, एक बेवा और उसकी लड़की को लेकर लौटे। रास्त में जमींदार का खेत लगा था, दिखकर कहा-सब अपनी ही रब्बी है।
सासुजी ने मुश्किल से आनन्दातिरेक को रोका। कुछ बढ़े। गाँव के बाग़ात देख पड़े। मन्नी ने हाथ उठाकर बताया-वहाँ से वहाँ तक सब अपनी ही बागें हैं।
सासुजी को सन्देह न रहा कि मन्नी मालदार आदमी है। घर टूटा था। भाइयों से जुदा होकर एक खण्डहर में रहे थे; लेकिन बाग्देवी प्रचण्ड थीं, खण्डहर को भी खिला दिया।
पहुँचने से पहले रास्ते में जमींदार की हवेली दिखाकर बोले-हमारा असली मकान यह है, लेकिन यहाँ भाई लोग हैं, आपको एकान्त में ले चलते हैं।
वहाँ आराम रहेगा, यहाँ आपकी इज्जत न होगी, फिर उसी को हवेली बना लेंगे। सासु ने श्रद्धापूर्वक कहा-हाँ भय्या, ठीक है, बाहरी आदमियों में रहना अच्छा नहीं।
मन्नी खण्डहर में ले गये। इस दिन पसेरी भर दूध ले आये। सासुजी लज्जित होकर बोलीं-ऐ इतना दूध कौन पियेगा ? मन्नी ने गम्भीरता से उत्तर दिया-औटने पर थोड़ा रह जायगा, तीन आदमी हैं, ज्यादा नहीं; फिर अभी कुछ दूध चीनी शरबत के तौर पर पियेंगे। सासु ने आराम की साँस ली।
मन्नी भंग छानते थे। ठाकुरद्वारे में एक गोला पीसकर तैयार किया और चुपचाप ले आये। दूध में शकर मिलाकर गोला घोल दिया। भंग में बादाम की मात्रा काफी थी सासुजी को अमृत का स्वाद आया, एक साँस में पी गयीं।
मन्नी ने थोड़ी सी अपनी भावी पत्नी को पिलायी, फिर खुद पी। सासुजी हाथ पैर धोकर बैठीं, मन्नी पूड़ी निकालने लगे। जब तक नशा चढ़े-चढ़े तब तक काम कर लिया।